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मैं विज्ञापन व्यवसाय में वर्षों से हूं। १९८४ में भारत का पहला राजनीतिक विज्ञापन मैंने कांग्रेस पार्टी के लिए तैयार किया था। लेकिन ऐसे विज्ञापनों से पहली बार भावनात्मक जुड़ाव हुआ २००२ में। जब मेरे अपने प्रदेश उत्तर प्रदेश की एक पार्टी का विज्ञापन बनाने का मौका आया। उस चुनाव की थीम लाइन थी- ‘उत्तर आपके हाथ में, उत्तर प्रदेश आपके हाथ में।’ इसी तरह लोक सभा चुनाव के दौरान इसी पार्टी के लिए तैयार मैंने लिखा- ‘उत्तर प्रदेश बने उत्तम प्रदेश’। यह लाइन भी मेरे दिल से निकली दिमाग से नहीं।
अमिताभ बच्चन से मेरा परिचय भी उत्तर प्रदेश से जुड़े एक छोटे से वाकये से हुआ। ‘जलवा’ फिल्म के एक सीन में सतीश कौशिक का किरदार अपने आपको अमिताभ का लंगोटिया यार होने की डींग मारता है और कहता है कि अमित मुझ से पूछे बिना कोई काम नहीं करता। बचपन में हम क्रिकेट खेलते थे तो पहले पूछ लेता था कि रामू भैया यह शॉट हम संगम की तरफ मारें कि सिविल लाइंस की तरफ? डायलॉग में संगम और सिविल लाइंस के इस जिक्र और उनका सही भौगोलिक परिचय देख कर अमितजी ने पूछ ही लिया कि किसने लिखा है?
मतलब ये कि एक उत्तर भारतीय उत्तर प्रदेश से दूर चला जाए, मगर उत्तर प्रदेश एक उत्तर भारतीय से दूर नहीं जा सकता। हमारी सोच में, संस्कार में, रस्मों में, त्योहार में, भाषा में, भोजन में, रहन-सहन में और मन में उत्तर प्रदेश हमेशा जिंदा रहता है। कभी आलू का स्वाद बन कर आता है, कभी शक्कर की मिठास बन कर घुल जाता है, कभी दूध की धार, कभी चाट की बहार। उत्तर प्रदेश हर गली, हर मोड़ पर मिल जाता है।
फिर उत्तर प्रदेश जो भारत का हृदय प्रदेश है, उसके ये हाल क्यों है? जो भारत की वैचारिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक क्रांति का अग्रदूत रहा है, आज इतना पिछड़ क्यों गया है? जो भारत के सनातन मूल्यों का प्रहरी रहा है और अपनी गंगा-जुमनी संस्कृति की कारण संयुक्त प्रांत कहलाता था, उसे आज क्या हो गया है? जो प्रदेश नहीं होता था, दुनिया का दसवां सबसे बड़ा देश होता, जो जनसंख्या और सांसद संख्या में देश में सर्वोपरि है, और जिसने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को सबसे अधिक प्रधानमंत्री दिए हैं, वो इस हाल में क्यों है? जहां कि नदियां, जलवायु, तराई, पत्थर, खनिज और वन, प्रकृति के इतने अद्भुत उपहार उपलब्ध हैं, उसके बच्चों को दूसरे प्रदेशों में अपना भविष्य क्यों खोजना पड़ता है?
बिजली, सड़क, पानी से ले कर नगर-विकास, खेती और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाएं जब तक नहीं होंगी, उत्तर प्रदेश की प्रतिभा दूसरे प्रदेशों को समृद्ध करती रहेंगी। फिल्म उद्योग को ही लें। उत्तर प्रदेश हिंदी का गढ़ है। मगर हिंदी फिल्में मुंबई में बनती हैं। ये फिल्में उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं बन सकती? जया बच्चन के नेतृत्व में जब मैं और फिल्मों में सक्रिय उत्तर प्रदेश के दूसरे लोग राज्य सरकार की ओर से बनाए गए ‘फिल्म बंधु’ के सदस्य थे तो ये बात हमने जोरों से उठाई थी कि हिंदी फिल्म उद्योग की सही जगह उत्तर प्रदेश है। मगर नोएडा में थोड़े से स्टूडियो को छोड़ कर वहां कुछ विकसित नहीं हो पाया। फिल्मवालों का क्या है जहां सुविधाएं मिलेंगी, जाएंगे। जब स्विटजरलैंड, स्कॉटलैंड, स्पैन, अर्जंटिना, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे दुनिया के सारे देश हिंदी फिल्मों को आकर्षित करने के सारे उपाय कर रहे हैं, तो उत्तर प्रदेश क्यों नहीं कर सकता?
संतोष की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में जितनी कमियां हैं, अपनी कमियों से लड़ने की उससे ज्यादा खूबियां भी हैं। जरूरत है कि प्रदेश और यहां की सरकार इन खूबियों को पहचाने और उनका उपयोग करे। जहां तक हम उत्तर भारतियों की बात है, हम जहां भी हैं, प्रतिक्षा में हैं कि मेरा प्रदेश मुझे आवाज दे। क्योंकि सवाल सिर्फ उत्तर प्रदेश का नहीं, पूरे देश का है। क्योंकि उत्तर प्रदेश सुधरेगा तभी देश भी बदलेगा। हम उत्तर प्रदेश के लिये जो कर सकते हैं, वो अंतत देश के हित में ही होगा।
कमलेश पांडे
(लेखक विज्ञापन, फिल्मों और टीवी के मशहूर लेखक हैं)
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