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प्रदेशवासियों के आर्थिक कल्याण में वृद्धि केवल भौतिक उपलब्धियों से ही संभव नहीं है। इसके लिए सुशासन, आपसी विश्वास तथा व्यवस्था के प्रति संतुष्टि अधिक महत्वपूर्ण है। प्रदेश में विकास का स्थायी आधार आज भी खेती और कृषि पर आधारित उद्योग धंधे हैं। इनका पुनर्गठन समय की मांग है। अर्थव्यवस्था में इनके योगदान का रूप बदल रहा है। कृषि में विनियोग बढ़ाना तथा उत्पादित व प्रसंस्कृत वस्तुओं के नियमित व्यापार को सुनिश्चित करना जरूरी होगा।
विकास के छह पूर्ण दशक गुजरने के बाद भी प्रदेश में अवस्थापना की कमियां प्रगति में बाधक बनी हैं। उत्तर प्रदेश के विकास के किसी भी सपने में दो जरूरतें प्रखरता से उभर कर सामने आती हैं-अच्छी सड़कें और निर्बाध विद्युत आपूर्ति। आने वाले दिनों में विद्युत आपूर्ति में सुधार जादू का काम कर सकता है। उत्तम कोटि की प्रौद्योगिकी का संचालन बिना ऊर्जा के संभव नहीं है। बिजली की उपलब्धता ही इसका आधार है। बिजली उत्पादन के साथ साथ वितरण की कमियों को दूर करना आवश्यक है। सार्वजनिक उपयोग में आने वाली बिजली में बचत की बड़ी संभावनाएं विद्यमान हैं। ग्रामीण विद्युत सहकारिताओं के गठन से एक नयी व्यवस्था को प्राप्त किया जा सकता है।
कृषि से जुड़ी संस्थाएं जड़ता में जकड़ी हैं। उन्हें अद्यतन ज्ञान तथा प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। संस्थागत आधुनिकीकरण विकास की कुंजी है। इस तथ्य को समझ कर कुशलतापूर्वक क्रियान्वित करना होगा। कृषि विकास एवं ग्रामीण विकास से जुड़े अनेक प्रतिबंधात्मक कानूनों में उदारीकरण की आवश्यकता है। अनावश्यक प्रशासनिक हस्तक्षेप इन क्षेत्रों के विकास में बड़ी बाधा उत्पन्न करता है। एक नये दृष्टिकोण की आवश्यकता है तथा निजी पहल को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
पिछड़े प्रदेशों में विकास का आधार शिक्षा है तथा शिक्षा से जनित सकारात्मक दृष्टिकोण एवं कौशल। शिक्षा कौशल का सृजन करती है तथा कौशल आधुनिक विकास का आधार है। तीन प्रकार की समस्याएं सामने हैं- जो त्रिकोणीय भी हैं अर्थात् तीनों में तालमेल नहीं बल्कि टकराव है। आज भी उत्तर प्रदेश में शिक्षा में ‘मात्रात्मकÓ विकास महत्वपूर्ण है। शैक्षिक संस्थाओं और अध्यापकों की संख्या में वृद्धि, ज्यादा विद्यार्थियों का नामांकन और अधिक मात्रा में शैक्षिक सुविधाएं। परंतु जैसे ही मात्रात्मक वृद्धि की जाएगी, शैक्षिक गुणवत्ता की समस्या और जटिल हो जाएगी। शिक्षा में गुणवत्ता तथा उत्कृष्टता प्राप्त करना परम आवश्यक है। मानकों का निर्धारण तथा उन्हें हासिल करना लाजिमी होगा। यह निरंतर बनी रहने वाली चुनौती है। शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों सामाजिक क्षेत्रों में गुणवत्ता प्राप्त करना एक ‘निरंतर प्रयास है- इसे जारी रखना होगा।
‘बुलंदियों पर पहुंचना कमाल नहीं,
बुलंदियों पर ठहरना कमाल होता है।
शिक्षा और स्वास्थ के क्षेत्र की तीसरी समस्या है ‘समानता को प्राप्त करना ताकि निर्धन एवं वंचित परिवारों को भी यह सुविधाएं बराबर मिलती रहें। निजीकरण के दौर में समानता का उद्देश्य प्राप्त करना और कठिन होगा। शुल्क मुक्ति की व्यवस्था, छात्रवृत्ति की व्यवस्था जैसी सुविधाएं लक्षित परिवारों को उपलब्ध करानी होगी।
औद्योगिक विकास एवं प्रौद्योगिकी का सृजन आधुनिक विकास का प्रत्यय बन गया है। उत्तर प्रदेश में इनको सक्षम करना होगा तथा अन्य प्रदेशों की तुलना में अधिक आकर्षक माहौल बनाना होगा ताकि उद्योग तथा प्रौद्योगिकी में निवेश को प्रोत्साहन मिल सके। भारी उद्योगों के साथ परंपरागत लघु एवं कुटीर उद्योगों को भी उपेक्षित नहीं करना है। प्रयास करना होगा कि उन्हें किस प्रकार आधुनिक तथा प्रतिस्पर्धात्मक बनाया जा सके। परंपरागत उद्योगों की दो बड़ी विशेषताएं हैं-स्थानीय संसाधनों का सदुपयोग तथा अधिक श्रम-गहन तकनीक पर आधारित होना- जिससे रोजगार के अधिक अवसर सृजित हो सकें। विकास में अनेक चीजों का समावेश होता है परंतु मुख्य मुद्दे उपर्युक्त हैं। इनका समुचित विकास समावेशी प्रगति का आधार उपलब्ध कराएगा। ग्यारह पंचवर्षीय योजनाएं समाप्त हो चुकी हैं। बारहवीं योजना शुरू हो चुकी है। प्राप्तियां नये सपनों को जन्म देती हैं। विकास की यात्रा निरंतर जारी है :
जुस्तजू हो तो सफर खत्म कहां होता है,
यूं तो हर मोड़ पर मंजिल का गुमां होता है।
– प्रो. मुहम्मद मुजम्मिल
अर्थशास्त्री एवं कुलपति, महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली
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