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तेज होती बहस: नक्सलवाद बनाम आतंकवाद

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रमण सिंह ने किया नक्सलियों को पराजित करने का आह्वान

हाल ही दांतेवाडा का जख्म खाए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह नक्सलवाद की चर्चा करते हुए उग्र हो उठते हैं. उनका मानना है कि छत्तीसगढ़ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. वे कही से भी यह स्वीकार करते नहीं दिखे कि छत्तीसगढ़ में सामंतवाद और आदिवासी संघर्ष है. बल्कि उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के बारे में भ्रम फैलाया जा रहा है. वहां सरकारी कम्पनियां ही खनन कार्य करती रही हैं. नक्सली समस्या गरीबी की समस्या नहीं है.हिंसात्मक नक्सली किसी भी हालत में रहम के काबिल नहीं क्योंकि वे खुद इंसान नहीं हैं. क्रांतिकारी बनने के नाम लूट हो रही है वहां. डेमोक्रेसी को आज सबसे अधिक चोट पहुँची है इन्ही तथाकथित छद्म क्रांतिकारियों के कारनामों से.

वैसे कई मायने में रमनसिंह अपनी जगह ठीक हैं. क्या किसी को सिर्फ इसलिए किसी दूसरे को चोट पहुंचाने की इजाजत दी जा सकती है क्योंकि वह दावा करता है कि उसका विकास नहीं हुआ? सत्ता या मीडिया में बैठे छद्म लोगों का प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन इन नक्सलियों को मिलता है. इसीलिए अब तक वे शासन के कोप से बचते रहे हैं. रमण कहते है कि चुनाव आयोग छतीसगढ़ में जनमत संग्रह करा कर वास्तविक मत से देश को रूबरू करा सकता है. सारी हकीकत सामने आ जाएगी.

दांतेवाडा की घटना इस बात का संकेत है कि नक्सली अब भारत राष्ट्र पर कब्जा कर लेने के मंसूबों को पूरा कर लेने की स्थिति में आ चुके हैं. क्या अब भी देश उन्हें बर्दाश्त करेगा? क्या देश की जनता अब भी ऐसी अराजकता को सहन कर सकेगी?

भारी उद्योग मंत्री विलासराव देशमुख
नक्सलवाद को भारी उद्योग मंत्री तथा पूर्व मुख्यमंत्री महाराष्ट्र विलासराव देशमुख केवल क़ानून-व्यवस्था की समस्या नहीं मानते बल्कि इसे कुछ अन्य दृष्टिकोणों से देखने की बात करते हैं. जागरण के फोरम पर सभी प्रकार की विचारधाराओं की अभिव्यक्ति को एक बेहतर प्रयास मानते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में विरोधी विचारधारा को भी सहन करने की ताकत होना जरूरी है और यही वास्तविक लोकतंत्र की पहचान है. विलासराव मानते है कि नक्सलवाद पर विजय के लिए स्थानीय लोगों के दिलों को जीतना होगा तभी वे भारत राष्ट्र की राजनीतिक व्यवस्था पर भरोसा कायम करेंगे.

सीताराम येचुरी के बोल-वचन

शासक वर्ग के चरित्र के बारे में विवाद से नक्सलवाद का आरम्भ मानते हुए येचुरी कहते हैं कि सामंतवाद ने जनसंवाद नहीं कायम करने दिया जिससे देश में एक नए तरह के वर्ग संघर्ष की उत्पत्ति हुई. तीन प्रकार से आज बेकाबू हो चुकी समस्या पर नियंत्रण कायम किया जाना चाहिए. स्थानीय स्तर पर विश्वास कायम करना, वास्तविक रूप से विकास करके तथा बुनियादी आर्थिक नीतियों को लागू करने के लिए विकास में सहभागी की भूमिका. इन तीन उपायों को शीघ्रातिशीघ अमल में लाना जरूरी है.

वैसे तो वामदलों को वैचारिक रूप से अंतर्विरोध स्थापित करने वाला माना जाता रहा है किन्तु येचुरी ने आज बड़ी साफगोई दिखाई तथा माओवाद की समस्या से निपटने के लिए कुछ व्यवहारिक उपाय सुझाए.

बाबूलाल मरांडी

विकास, लोकतंत्र और उग्रवाद विषय पर बोलते हुए बाबूलाल मरांडी काफी भावुक हो गए. उन्होंने लोकतंत्र के लिए मजबूत सरकार की वकालत की. उनका मानना है कि विविध संस्कृतियों और रिवाजों वाला भारत बिना मजबूत और स्थायी सरकार के सही दिशा में विकास नहीं कर सकेगा. हमें राजनीतिक रूप से किए गए वादों को पूरा करना होगा.

नक्सली सिर्फ और सिर्फ हिंसा चाहते हैं. वे वाकई लोकतंत्र के दुश्मन बन चुके हैं. उनके मंसूबे खतरनाक हैं. हमें अपने लोगों को समझा-बुझा कर नक्सलियों के जाल में फंसने से रोकना होगा.

उन्होंने शासन पर प्रहार किया और कहा कि सरकारें कुछ करना ही नहीं चाहती. अगर सरकार चाहे तो नक्सलवाद मिटने में देर नहीं लगेगी. नक्सलियों को अलग करना होगा और आदिवासियों को उनके चंगुल से बचाना होगा. तभी जाकर देश में शान्ति कायम की जा सकती है. उन्होंने सरकारी सूचना तंत्र के कमजोरी की भी निंदा की.

यह सही है कि देश आज नक्सली समस्या से कराह रहा है. सरकारे किंकर्तव्यवीमूढ की स्थिति में हैं . क्या करना है इसका निर्णय लेने में अक्षमता सिर्फ देश को नई समस्यायों में उलझता जा रहा है. हालाकि इस संकट की घड़ी में सभी को एकजुट हो जाना चाहिए. तभी हम हर समस्या मुकाबला कर सकेंगे.

केपीएस गिल

पंजाब में आतंकवाद को नेस्तनाबूद करने वाले केपीएस गिल का भी यही मानना है नक्सलवाद को सख्ती से ही कुचला जा सकता है. केपीएस कहते हैं कि सरकारी मशीनरी को एक सीमा तक छूट देकर तथा पैरामिलाट्री फोर्सेज को अत्याधुनिक साधनों से लैस करके इस भयावह समस्या पर काबू पाया जा सकेगा. अतिवाद और आतंकवाद ऐसी बीमारियाँ हैं जो बर्दाश्त करने पर संक्रामक रोग की तरह फैलती हैं. राजनीतिक इच्छाशक्ति को बढ़ा कर हमें मुकाबले की तैयारी करनी होगी. कुछ अन्य बुद्धिजीवियों ने नक्सलवाद की समस्या का मुकाबला करने के लिए कई दिशाओं में एकसाथ प्रयास करने की जरूरत को रेखांकित किया.

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