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फोरम के अंतिम सत्र में लीडर ऑफ़ अपोजीशन लोक सभा सुषमा स्वराज ने अपने विचार देश के सामने रखे. तेजतर्रार वक्ता और स्त्री शक्ति की प्रतीक सुषमा स्वराज ने प्रजातंत्र के बारे में सार्थक विचार व्यक्त किए.
उन्होंने उल्लेख करते हुए कहा कि आज का पहला विषय था गठबंधन सरकार और तीव्र विकास
इसमें कई प्रश्न उठाए गए यथा क्या गठबंधन सरकार के काल में तीव्र विकास संभव है? इसका स्वयम ही उत्तर दिया उन्होंने कि हाँ, गठबंधन सरकारें अनिवार्य हो चुकी हैं.क्योंकि किसी भी दल की अकेले सरकार बनाने की स्थिति नहीं. सुषमा ने कुछ पुरानी बातों को उजागर करते हुए बताया कि एनडीए पहली सफल गठबंधन सरकार देने वाला गठबंधन(चौबीस दलों की सरकार) रहा. इस गठबंधन में विकास के कार्यों पर कोई असहमति नहीं थी.उन्होंने प्रश्न किया कि कैसे कोलीशन को एक एडवांटेज में बदला जा सकता है. फिर खुद ही जवाब दिया कि कोलीशन खुद ही में एक एडवांटेज है.
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आगे बात बढाते हुए सुषमा जी कहती हैं कि आज फोरम में दूसरा विषय चुना गया था प्रजातंत्र विकास और उग्रवाद
इसके जवाब में वे कहती हैं कि प्रजातंत्र के लिए सबसे बड़ा अवरोध नक्सलवाद और आतंकवाद है. एक सांघातिक ख़तरा. कन्सेंसस बिल्डिंग के लिए कई उदाहरणों को प्रस्तुत करते हुए सुषमा स्वराज ने ईराक में सेना भेजने के मामले का उल्लेख किया. वे कहती हैं कि इस मसले पर सरकार और विपक्ष में मतों की समानता थी इसलिए ऐसे समान मुद्दों पर किसी जिद की जरूरत कहाँ. देश हित के मुद्दों पर कन्सेंसस होना ही चाहिए ना कि आपसी अंतर्विरोध. गरीबी, बेरोजगारी, राष्ट्रीय सुरक्षा, जन स्वास्थ्य, पीडीएस सिस्टम, संसाधनों के समान और उचित वितरण के मामले पर एकमत होने में कैसी समस्या?
आज सुषमा जी के तीखे तेवर फिर देखने में आए. उन्होंने देश की सबसे गंभीर समस्यायों पर आम राय ना कायम होने पर अपना आक्रोश व्यक्त किया और पूछा कि आखिर नक्सलवाद, आतंकवाद आदि जैसे मामलों पर क्यों नहीं समान मत कायम हो पा रहा है? रक्षा सौदों की खरीद, चुनाव सुधार, भ्रष्टाचार के मामलों पर कन्सेंसस क्यों नहीं बनता? रचनात्मक विपक्ष की स्थिति के बावजूद सत्ता पक्ष में ही आपसी सहमति की कमी को इसका कारण मानते हुए सुषमा जी ने देश को आश्वस्त किया कि विपक्ष कन्सेंसस के लिए पूर्णरूपेण तैयार है, जरूरत है सत्ता पक्ष को इसके लिए तैयार दिखने की.
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